नई दिल्ली : एकादशी का पर्व श्रीहरि विष्णु और उनके अवतारों के पूजन का पर्व है। हिंदू धर्म में एकादशी का व्रत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। प्रत्येक वर्ष 24 एकादशियां होती हैं। जब अधिकमास या मलमास आता है तो इनकी संख्या बढ़कर 26 हो जाती है। लेकिन कार्तिक महीने की शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवोत्थान एकादशी और देवप्रबोधिनी एकादशी के नाम से जाना जाता है।
इसकी वजह यह है कि आषाढ़ महीने की शुक्ल पक्ष की एकादशी को भगवान विष्णु क्षीर सागर में शयन करने चले जाते हैं और 4 महीने तक सोने के बाद कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन जागते हैं। इसलिए इस दिन को देवोत्थान, देवउठनी और देवप्रबोधिनी एकादशी के नाम से जाना जाता है।
देवोत्थान एकादशी की मान्यताएं
ऐसी मान्यता है कि इस दिन भगवान नारायण निद्रा से जागे हैं इसलिए उपासक को भी इस दिन व्रत रखते हुए रात्रि जागरण करना चाहिए। भगवान नारायण के चार महीने तक शयन की अवधि में लगभग सभी पुण्य कार्य निषिद्ध रहते हैं। लिहाजा इस दिन से ही शादी-विवाह, नया कारोबार जैसे मांगलिक कार्यों की शुरुआत होती है। इस दिन वैष्णव ही नहीं, स्मार्त श्रद्धालु भी बडी आस्था के साथ व्रत करते हैं।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, दीपावली के बाद आने वाली एकादशी को पूरे चार महीने बाद भगवान विष्णु जागते हैं इसीलिए इसे देवोत्थान एकादशी कहते हैं। जिन चार महीनों में श्रीहरि सोते हैं उन महीनों में विवाह, नामकरण संस्कार और उपनयन जैसे कोई भी मंगल कर्म नहीं किए जाते हैं। देवोत्थान एकादशी के दिन वह अपनी प्रिय तुलसी से विवाह करते हैं और इसी के बाद शुभ कार्यों की शुरूआत हो जाती है।
इस दिन घर में गन्ने की पूजा के साथ तुलसी-विष्णु की विवाह के लिए मंडप सजाया जाता है। लोग अपने अपने घरों को इस दिन दिवाली की तरह दीपक जलाते हैं और सभी देवी-देवताओं को प्रसन्न करते हैं। यह बहुत ही शुभ होता है। जिससे उनके घर में हमेशा कृपा बनी रहे और उनके घर इसी तरह दीए की रौशनी से रौनक रहें। इसके साथ ही मां तुलसी का विवाह भगवान सालिगराम (विष्णु जी) के साथ होता है।
देवोत्थान एकादशी का महत्व
देवोत्थान एकादशी के दिन उपवास रखने का विशेष महत्व है। कहते हैं कि इस दिन उपवास रखने से मोक्ष मिलता है। इस व्रत को करने वाला दिव्य फल प्राप्त करता है। वहीं धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, श्री हरि-प्रबोधिनी (देवोत्थान) एकादशी का व्रत करने से एक हजार अश्वमेध यज्ञ तथा सौ राजसूय यज्ञों का फल मिलता है।
मान्यता है इस परम पुण्य प्रदाएकादशी के विधिवत व्रत से सब पाप भस्म हो जाते हैं तथा व्रती मरणोपरान्त बैकुण्ठ जाता है। इस एकादशी के दिन भक्त श्रद्धा के साथ जो कुछ भी जप-तप, स्नान-दान, होम करते हैं, वह सब अक्षय फलदायक हो जाता है।
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