नई दिल्ली : मकर संक्रांति हिन्दुओं का प्रमुख पर्व है। इस त्यौहार को भारत में व्यापक स्तर पर मनाया जाता है। शास्त्रों में भी इसकी विशेष महत्ता बताई गई है। भारतवर्ष के अलग-अलग राज्यों, शहरों और गांवों में मकर संक्रांति का त्यौहार अलग-अलग नाम और वहां की परंपराओं के अनुसार मनाया जाता है।
यह त्यौहार इसलिए इतने व्यापक स्तर पर मनाया जाता है क्योंकि यह एक खास पर्व है। इस दिन सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है, सूर्य उत्तरायण होते हैं। सूर्य के उत्तरायण होने से प्रकृति में एक विशेष प्रकार की रौनकता आ जाती है। लेकिन क्या आप जानते है मकर संक्रांति में ‘संक्रांति’ क्या है? संक्रांति किसे कहते हैं? जानिए इसका रहस्य।
मकर संक्रांति में ‘संक्रांति’ का क्या है मतलब, संक्रांति किसे कहते हैं?
सूर्य के एक राशि से दूसरी राशि में जाने को ही ‘संक्रांति‘ कहते हैं। एक संक्रांति से दूसरी संक्रांति की अवधि ही सौर मास होती है। वैसे तो सूर्य संक्रांति 12 हैं, लेकिन इनमें से 4 संक्रांति ही महत्वपूर्ण हैं जिनमें मेष, तुला, कर्क और मकर संक्रांति प्रमुख हैं।
दरअसल, हिन्दू धर्म में कैलेंडर सूर्य, चंद्र और नक्षत्र पर आधारित होता है। सूर्य पर आधारित को सौर्यवर्ष, चंद्र पर आधारित को चंद्रवर्ष और नक्षत्र पर आधारिक को नक्षत्र वर्ष कहते हैं। जिस तरह चंद्रवर्ष के माह के दो भाग होते हैं- शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष, उसी तरह सौर्यवर्ष के दो भाग होते हैं- उत्तरायण और दक्षिणायन। सौर्यवर्ष का पहला माह मेष होता है जबकि चंद्रवर्ष का महला माह चैत्र होता है। नक्षत्र वर्ष का पहला माह चित्रा होता है।
मकर संक्रांति
सूर्य जब मकर राशि में जाता है तो उत्तरायन गति करने लगता है। उत्तरायन अर्थात उस समय धरती का उत्तरी गोलार्ध सूर्य की ओर मुड़ जाता है तो उत्तर ही से सूर्य निकलने लगता है। पूर्व की जगह वह उत्तर से निकलकर गति करता है। इसे सोम्यायन भी कहते हैं। 6 माह सूर्य उत्तरायन रहता है और 6 माह दक्षिणायन। उत्तरायन को देवताओं का दिवस माना जाता है और दक्षिणायन को पितरों आदि का दिवस।
भगवान श्रीकृष्ण ने भी उत्तरायन का महत्व बताते हुए गीता में कहा है कि उत्तरायन के 6 मास के शुभ काल में, जब सूर्य देव उत्तरायन होते हैं और पृथ्वी प्रकाशमय रहती है, तो इस प्रकाश में शरीर का परित्याग करने से व्यक्ति का पुनर्जन्म नहीं होता, ऐसे लोग ब्रह्म को प्राप्त हैं। इसके विपरीत सूर्य के दक्षिणायण होने पर पृथ्वी अंधकारमय होती है और इस अंधकार में शरीर त्याग करने पर पुनः जन्म लेना पड़ता है। यही कारण था कि भीष्म पितामह ने शरीर तब तक नहीं त्यागा था, जब तक कि सूर्य उत्तरायन नहीं हो गया। 14 जनवरी के बाद सूर्य उत्तरायन हो जाता है।
मकर संक्रांति से अच्छे-अच्छे पकवान खाने के दिन शुरू हो जाते हैं। इस दिन खिचड़ी का भोग लगाया जाता है। गुड़-तिल, रेवड़ी, गजक का प्रसाद बांटा जाता है। मकर संक्रांति के शुभ मुहूर्त में स्नान, दान व पुण्य का विशेष महत्व है। साथ ही इस दिन पतंग उड़ाई जाती है, तो इसे पतंगोत्सव भी कहते हैं।
मेष संक्रांति
सूर्य जब मेष राशि में संक्रमण करता है तो उसे मेष संक्रांति कहते हैं। मीन राशि से मेष राशि में सूर्य का प्रवेश होता है। खगोलशास्त्र के अनुसार सूर्य उत्तरायन की आधी यात्रा पूर्ण कर लेते हैं। चंद्रमास अनुसार यह बैसाख माह की शुरुआत का दिन भी होता है, तो इस दिन पंजाब में बैसाख पर्व मनाया जाता है। बैसाखी के समय आकाश में विशाखा नक्षत्र होता है। विशाखा युवा पूर्णिमा में होने के कारण इस माह को बैसाखी कहते हैं। इस प्रकार वैशाख मास के प्रथम दिन को बैसाखी कहा गया और पर्व के रूप में स्वीकार किया गया।
भारतभर में बैसाखी का पर्व सभी जगह मनाया जाता है। इसे दूसरे नाम से ‘खेती का पर्व‘ भी कहा जाता है। कृषक इसे बड़े आनंद और उत्साह के साथ मनाते हुए खुशियों का इजहार करते हैं। पंजाब की भूमि से जब रबी की फसल पककर तैयार हो जाती है, तब यह पर्व मनाया जाता है।
कर्क संक्रांति
मकर संक्रांति से लेकर कर्क संक्रांति के बीच के 6 मास के समयांतराल को उत्तरायन कहते हैं। कर्क संक्रांति से लेकर मकर संक्रांति के बीच के 6 मास के काल को दक्षिणायन कहते हैं। इसे याम्यायनं भी कहते हैं। सूर्य इस दिन मिथुन राशि से निकलकर कर्क राशि में प्रवेश करते हैं। दक्षिणायन के दौरान वर्षा, शरद और हेमंत- ये 3 ऋतुएं होती हैं। दक्षिणायन के समय रातें लंबी हो जाती हैं और दिन छोटे होने लगते हैं। दक्षिणायन में सूर्य दक्षिण की ओर झुकाव के साथ गति करता है। कर्क संक्राति जुलाई के मध्य में होती है।
धार्मिक मान्यता के अनुसार दक्षिणायन का काल देवताओं की रात्रि है। कर्क संक्रांति से जप, तप, व्रत और उपवासों के पर्व शुरू हो जाते हैं। दक्षिणायन में विवाह, मुंडन, उपनयन आदि विशेष शुभ कार्य निषेध माने जाते हैं।
तुला संक्रांति
सूर्य का तुला राशि में प्रवेश तुला संक्रांति कहलाता है। यह प्रवेश अक्टूबर माह के मध्य में होता है। तुला संक्रांति का कर्नाटक में खास महत्व है। इसे ‘तुला संक्रमण’ कहा जाता है। इस दिन ‘तीर्थोद्भव’ के नाम से कावेरी के तट पर मेला लगता है, जहां स्नान और दान-पुण्य किया जाता है। इस तुला माह में गणेश चतुर्थी की भी शुरुआत होती है। कार्तिक स्नान प्रारंभ हो जाता है।
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