आरती का अर्थ है पूरी श्रद्धा के साथ परमात्मा की भक्ति में डूब जाना। भगवान को प्रसन्न करना। इसमें परमात्मा में लीन होकर भक्त अपने देव की सारी बलाए स्वयं पर ले लेता है और भगवान को स्वतन्त्र होने का अहसास कराता है। आरती आपके द्वारा की गई पूजा में आई छोटी से छोटी कमी को दूर कर देती है।
आरती को नीराजन भी कहा जाता है। नीराजन का अर्थ है विशेष रूप से प्रकाशित करना। यानी कि देव पूजन से प्राप्त होने वाली सकारात्मक शक्ति हमारे मन को प्रकाशित कर दें। व्यक्तित्व को उज्जवल कर दें। बिना मंत्र के किए गए पूजन में भी आरती कर लेने से पूर्णता आ जाती है। आरती पूरे घर को प्रकाशमान कर देती है, जिससे कई नकारात्मक शक्तियां घर से दूर हो जाती हैं। जीवन में सुख-समृद्धि के द्वार खुलते हैं।
त्रिदेवों में भगवान विष्णु का स्थान पालनकर्ता का है। भगवान विष्णु की आराधना कर भक्त अपने स्वस्थ जीवन और खुशहाल परिवार की कामना करते हैं। भगवान विष्णु की आराधना के लिए निम्न आरती का पाठ करना चाहिए। पढ़िए भगवान श्री विष्णु की ये आरती।
॥ भगवान श्री विष्णु जी की आरती ॥
ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी जय जगदीश हरे । भक्तजनों के संकट क्षण में दूर करे ॥
ॐ जय जगदीश हरे…
जो ध्यावै फल पावै, दुख बिनसे मन का । सुख-संपत्ति घर आवै, कष्ट मिटे तन का ॥
ॐ जय जगदीश हरे…
मात-पिता तुम मेरे, शरण गहूँ किसकी । तुम बिनु और न दूजा, आस करूँ जिसकी ॥
ॐ जय जगदीश हरे…
तुम पूरन परमात्मा, तुम अंतरयामी । पारब्रह्म परेमश्वर, तुम सबके स्वामी ॥
ॐ जय जगदीश हरे…
तुम करुणा के सागर तुम पालनकर्ता । मैं मूरख खल कामी, कृपा करो भर्ता ॥
ॐ जय जगदीश हरे…
तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति । किस विधि मिलूँ दयामय! तुमको मैं कुमति ॥
ॐ जय जगदीश हरे…
दीनबंधु दुखहर्ता, तुम ठाकुर मेरे । अपने हाथ उठाओ, द्वार पड़ा तेरे ॥
ॐ जय जगदीश हरे…
विषय विकार मिटाओ, पाप हरो देवा । श्रद्धा-भक्ति बढ़ाओ, संतन की सेवा ॥
ॐ जय जगदीश हरे…
ऊँ जय जगदीश हरे, स्वामी जय जगदीश हरे । भक्तजनों के संकट, क्षण में दूर करे ॥
ऊँ जय जगदीश हरे…
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