आरती का अर्थ है पूरी श्रद्धा के साथ परमात्मा की भक्ति में डूब जाना। भगवान को प्रसन्न करना। इसमें परमात्मा में लीन होकर भक्त अपने देव की सारी बलाए स्वयं पर ले लेता है और भगवान को स्वतन्त्र होने का अहसास कराता है। आरती आपके द्वारा की गई पूजा में आई छोटी से छोटी कमी को दूर कर देती है।
आरती को नीराजन भी कहा जाता है। नीराजन का अर्थ है विशेष रूप से प्रकाशित करना। यानी कि देव पूजन से प्राप्त होने वाली सकारात्मक शक्ति हमारे मन को प्रकाशित कर दें। व्यक्तित्व को उज्जवल कर दें। बिना मंत्र के किए गए पूजन में भी आरती कर लेने से पूर्णता आ जाती है। आरती पूरे घर को प्रकाशमान कर देती है, जिससे कई नकारात्मक शक्तियां घर से दूर हो जाती हैं। जीवन में सुख-समृद्धि के द्वार खुलते हैं।
हिंदू धर्म में कृष्ण जी को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है। महाभारत काल में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का ज्ञान देकर एक बहुत ही अहम भूमिका निभाई थी। भगवान कृष्ण की आराधना के लिए निम्न आरती का पाठ करना चाहिए। पढ़िए भगवान श्री कृष्ण की ये आरती।
॥ भगवान श्री कृष्ण जी की आरती ॥
ॐ जय श्री कृष्ण हरे, प्रभु जय श्री कृष्ण हरे । भक्तन के दुख टारे पल में दूर करे ॥
जय जय श्री कृष्ण हरे…
परमानन्द मुरारी मोहन गिरधारी । जय रस रास बिहारी जय जय गिरधारी ॥
जय जय श्री कृष्ण हरे…
कर कंकन कटि सोहत कानन में बाला । मोर मुकुट पीताम्बर सोहे बनमाला ॥
जय जय श्री कृष्ण हरे…
दीन सुदामा तारे दरिद्रों के दुख टारे । गज के फंद छुड़ाए भवसागर तारे ॥
जय जय श्री कृष्ण हरे…
हिरण्यकश्यप संहारे नरहरि रुप धरे । पाहन से प्रभु प्रगटे जम के बीच परे ॥
जय जय श्री कृष्ण हरे…
केशी कंस विदारे नल कूबर तारे । दामोदर छवि सुंदर भगतन के प्यारे ॥
जय जय श्री कृष्ण हरे…
काली नाग नथैया नटवर छवि सोहे । फन-फन नाचा करते नागन मन मोहे ॥
जय जय श्री कृष्ण हरे…
राज्य उग्रसेन पायो माता शोक हरे । द्रुपद सुता पत राखी करुणा लाज भरे ॥
जय जय श्री कृष्ण हरे… ॐ जय श्री कृष्ण हरे ॥
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