आरती का अर्थ है पूरी श्रद्धा के साथ परमात्मा की भक्ति में डूब जाना। भगवान को प्रसन्न करना। इसमें परमात्मा में लीन होकर भक्त अपने देव की सारी बलाए स्वयं पर ले लेता है और भगवान को स्वतन्त्र होने का अहसास कराता है।
आरती को नीराजन भी कहा जाता है। नीराजन का अर्थ है विशेष रूप से प्रकाशित करना। यानी कि देव पूजन से प्राप्त होने वाली सकारात्मक शक्ति हमारे मन को प्रकाशित कर दें। व्यक्तित्व को उज्जवल कर दें। बिना मंत्र के किए गए पूजन में भी आरती कर लेने से पूर्णता आ जाती है। आरती पूरे घर को प्रकाशमान कर देती है, जिससे कई नकारात्मक शक्तियां घर से दूर हो जाती हैं। जीवन में सुख-समृद्धि के द्वार खुलते हैं।
हिन्दू धर्म में गणेश जी को प्रथम पूजनीय माना जाता है। भगवान गणेश जी की पूजा सभी देवी देवताओ में सबसे पहले की जाती है। हर शुभ कार्य से पहले गणेश जी की पूजा की जाती है और हर शुभ अवसर पर श्री गणेश जी को पहला निमंत्रण भेजा जाता है। गणेश जी को विनायक और गणपति भी कहा जाता है। गणेश जी को बाधाये दूर करने वाले, कला और विज्ञान के संरक्षक और बुद्धि के देवता के रूप में पूजा जाता है। भगवान श्री गणेश जी के पूजा में उनकी आरती का विशेष महत्व है जो निम्न है। पढ़िए भगवान श्री गणेश की ये आरती।
॥ भगवान श्री गणेश जी की आरती ॥
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा ॥
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा ॥
लड्डुअन को भोग लगे, संत करे सेवा ।
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा ॥
एक दंत दयावंत, चार भुजा धारी ।
मस्तक सिंदूर सोहे, मूसे की सवारी ॥
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा ॥
अंधन को आंख देत, कोढ़िन को काया ।
बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया ॥
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा ॥
लड्डुअन को भोग लगे, संत करे सेवा ।
हार चढ़ै, फूल चढ़ै और चढ़ै मेवा ॥
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा ॥
दीनन की लाज राखो, शंभु सुतवारी ।
कामना को पूर्ण करो, जग बलिहारी ॥
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा ॥
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा।।
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा ॥
विध्न – हरण मंगल-करण, काटन सकल क्लेश ।
सबसे पहले सुमरिए गौरी-पुत्र गणेश ॥
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