आरती का अर्थ है पूरी श्रद्धा के साथ परमात्मा की भक्ति में डूब जाना। भगवान को प्रसन्न करना। इसमें परमात्मा में लीन होकर भक्त अपने देव की सारी बलाए स्वयं पर ले लेता है और भगवान को स्वतन्त्र होने का अहसास कराता है। आरती आपके द्वारा की गई पूजा में आई छोटी से छोटी कमी को दूर कर देती है।
आरती को नीराजन भी कहा जाता है। नीराजन का अर्थ है विशेष रूप से प्रकाशित करना। यानी कि देव पूजन से प्राप्त होने वाली सकारात्मक शक्ति हमारे मन को प्रकाशित कर दें। व्यक्तित्व को उज्जवल कर दें। बिना मंत्र के किए गए पूजन में भी आरती कर लेने से पूर्णता आ जाती है। आरती पूरे घर को प्रकाशमान कर देती है, जिससे कई नकारात्मक शक्तियां घर से दूर हो जाती हैं। जीवन में सुख-समृद्धि के द्वार खुलते हैं।
हिन्दू धर्म के अनुसार बृहस्पति देव को सभी देवी-देवताओं का गुरु माना जाता है। देवगुरु बृहस्पति की पूजा साधना करने से मनुष्य का जीवन सुखी होता है। हिन्दू धर्म में वीरवार के दिन व्रत रखने का विधान है। इस व्रत में मुख्य रूप से बृहस्पति देव की पूजा की जाती है। भगवान देवगुरु बृहस्पति जी की आराधना के लिए निम्न आरती का पाठ करना चाहिए। पढ़िए भगवान बृहस्पति देव जी की ये आरती।
॥ देवगुरु बृहस्पति जी की आरती ॥
जय बृहस्पति देवा, जय बृहस्पति देवा।
छिन छिन भोग लगाऊ फल मेवा॥
॥जय बृहस्पति देवा॥
तुम पूरण परमात्मा, तुम अंतर्यामी।
जगत पिता जगदीश्वर तुम सबके स्वामी॥
॥जय बृहस्पति देवा॥
चरणामृत निज निर्मल, सब पातक हर्ता।
सकल मनोरथ दायक, किरपा करो भर्ता॥
॥जय बृहस्पति देवा॥
तन, मन, धन अर्पणकर जो शरण पड़े।
प्रभु प्रकट तब होकर, आकर द्वार खड़े॥
॥जय बृहस्पति देवा॥
दीन दयाल दयानिधि, भक्तन हितकारी।
पाप दोष सभ हर्ता, भाव बंधन हारी॥
॥जय बृहस्पति देवा॥
सकल मनोरथ दायक, सब संशय तारो।
विषय विकार मिटाओ संतन सुखकारी॥
॥जय बृहस्पति देवा॥
जो कोई आरती तेरी, प्रेम सहित गावे।
जेष्टानंद बन्द सो सो निश्चय पावे॥
॥जय बृहस्पति देवा॥
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