आरती का अर्थ है पूरी श्रद्धा के साथ परमात्मा की भक्ति में डूब जाना। भगवान को प्रसन्न करना। इसमें परमात्मा में लीन होकर भक्त अपने देव की सारी बलाए स्वयं पर ले लेता है और भगवान को स्वतन्त्र होने का अहसास कराता है। आरती आपके द्वारा की गई पूजा में आई छोटी से छोटी कमी को दूर कर देती है।
आरती को नीराजन भी कहा जाता है। नीराजन का अर्थ है विशेष रूप से प्रकाशित करना। यानी कि देव पूजन से प्राप्त होने वाली सकारात्मक शक्ति हमारे मन को प्रकाशित कर दें। व्यक्तित्व को उज्जवल कर दें। बिना मंत्र के किए गए पूजन में भी आरती कर लेने से पूर्णता आ जाती है। आरती पूरे घर को प्रकाशमान कर देती है, जिससे कई नकारात्मक शक्तियां घर से दूर हो जाती हैं। जीवन में सुख-समृद्धि के द्वार खुलते हैं।
हिन्दू धर्म के अनुसार भगवान शंकर के अवतारों मे भैरव जी का अपना ही एक विशिष्ट स्थान है। भैरव का अर्थ है, ‘भ’ से विशव का ‘भरण’, ‘र’ से ‘रमेश’, ‘व’ से वमन, अर्थात सृष्टि की रचना व उत्पत्ति, पालन और सहांर करने वाले शिव ही भैरव हैं। भैरव यंत्र की बहुत विशेषता मानी गई है, भैरव साधना अकाल मौत से बचाती है, तथा भूत, प्रेत, काले जादू से भी हमारी रक्षा करता है। भगवान भैरव जी की आराधना के लिए निम्न आरती का पाठ करना चाहिए। पढ़िए भगवान श्री भैरव जी की ये आरती।
॥ भगवान श्री भैरव जी की आरती ॥
जय भैरव देवा, प्रभु जय भैरव देवा।
जय काली और गौरा कृतसेवा॥
तुम पापी उद्धारक दुख सिन्धु तारक।
भक्तों के सुखकारक भीषण वपु धारक॥
वाहन श्वान विराजत कर त्रिशूल धारी।
महिमा अमित तुम्हारी जय जय भयहारी॥
तुम बिन देवा सेवा सफल नहीं होवे।
चतुर्वतिका दीपक दर्शन दुःख खोवे॥
तेल चटकी दधि मिश्रित माषवली तेरी।
कृपा कीजिये भैरव करिये नहीं देरी॥
पैरों घुंघरू बाजत डमरू डमकावत।
बटुकनाथ बन बालक जन मन हरषवत॥
बटुकनाथ की आरती जो कोई जन गावे।
कहे धरणीधर वह नर मन वांछित फल पावे॥
॥जय भैरव देवा, प्रभु जय भैरव देवा॥
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