आरती का अर्थ है पूरी श्रद्धा के साथ परमात्मा की भक्ति में डूब जाना। भगवान को प्रसन्न करना। इसमें परमात्मा में लीन होकर भक्त अपने देव की सारी बलाए स्वयं पर ले लेता है और भगवान को स्वतन्त्र होने का अहसास कराता है। आरती आपके द्वारा की गई पूजा में आई छोटी से छोटी कमी को दूर कर देती है।
आरती को नीराजन भी कहा जाता है। नीराजन का अर्थ है विशेष रूप से प्रकाशित करना। यानी कि देव पूजन से प्राप्त होने वाली सकारात्मक शक्ति हमारे मन को प्रकाशित कर दें। व्यक्तित्व को उज्जवल कर दें। बिना मंत्र के किए गए पूजन में भी आरती कर लेने से पूर्णता आ जाती है। आरती पूरे घर को प्रकाशमान कर देती है, जिससे कई नकारात्मक शक्तियां घर से दूर हो जाती हैं। जीवन में सुख-समृद्धि के द्वार खुलते हैं।
हिन्दू धर्म में तुलसी को ‘तुलसी माता‘ कहते है। घर में तुलसी का पौधा लगाने से पर्यावरण शुद्ध होता है और तुलसी का पौधा सभी रोगों से रक्षा होती है। भगवान विष्णु जी को तुलसी अति प्रिये थी। तुलसी माता की पूजा से सुख सम्पति का वास होता है। तुलसी माता की आराधना के लिए निम्न आरती का पाठ करना चाहिए। पढ़िए श्री तुलसी माता की ये आरती।
॥ तुलसी माता की आरती ॥
ऊँ जय तुलसी माता, मैया जय तुलसी माता।
सब सुख की दाता वर माता॥
ऊँ जय तुलसी माता …
सब योगों के ऊपर, सब रोगों के ऊपर।
रज से रक्षा करके भव त्राता॥
ऊँ जय तुलसी माता …
बहु पुत्री है श्यामा, सूर वल्ली है ग्राम्या।
विष्णु प्रिय जो तुमको सेवे सो नर तर जाता॥
ऊँ जय तुलसी माता …
हरि के शीश विराजत त्रिभुवन से हो वंदित।
पतित जनों की तारिणि तुम हो विख्याता॥
ऊँ जय तुलसी माता …
लेकर जन्म बिजन में, आई दिव्य भवन में।
मानव लोक तुम्हीं से सुख संपति पाता॥
ऊँ जय तुलसी माता …
हरि को तुम अति प्यारी श्याम वर्ण सुकुमारी।
प्रेम अजब है श्री हरि का तुम से नाता॥
ऊँ जय तुलसी माता …
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