आरती का अर्थ है पूरी श्रद्धा के साथ परमात्मा की भक्ति में डूब जाना। भगवान को प्रसन्न करना। इसमें परमात्मा में लीन होकर भक्त अपने देव की सारी बलाए स्वयं पर ले लेता है और भगवान को स्वतन्त्र होने का अहसास कराता है। आरती आपके द्वारा की गई पूजा में आई छोटी से छोटी कमी को दूर कर देती है।
आरती को नीराजन भी कहा जाता है। नीराजन का अर्थ है विशेष रूप से प्रकाशित करना। यानी कि देव पूजन से प्राप्त होने वाली सकारात्मक शक्ति हमारे मन को प्रकाशित कर दें। व्यक्तित्व को उज्जवल कर दें। बिना मंत्र के किए गए पूजन में भी आरती कर लेने से पूर्णता आ जाती है। आरती पूरे घर को प्रकाशमान कर देती है, जिससे कई नकारात्मक शक्तियां घर से दूर हो जाती हैं। जीवन में सुख-समृद्धि के द्वार खुलते हैं।
हिन्दू धर्म के अनुसार श्री राधा जी भगवान विष्णु की अर्धांगिनी देवी लक्ष्मी जी के अवतार हैं। भगवान श्री कृष्ण के साथ राधा जी का ही नाम लिया जाता है। राधा-कृष्ण को शाश्वत प्रेम का प्रतीक माना जाता हैं। इनकी भक्ति से व्यक्ति के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं। श्री राधा जी की आराधना के लिए निम्न आरती का पाठ करना चाहिए। पढ़िए श्री राधा जी की ये आरती।
॥ श्री राधा जी की आरती ॥
आरती श्री वृषभानुसुता की,
मंजु मूर्ति मोहन ममता की।
त्रिविध तापयुत संसृति नाशिनि,
विमल विवेक विराग विकासिनि।
पावन प्रभु पद प्रीति प्रकाशिनि,
सुन्दरतम छवि सुन्दरता की॥
आरती श्री वृषभानुसुता की …
मुनि मन मोहन मोहन मोहनि,
मधुर मनोहर मूरती सोहनि।
अविरलप्रेम अमिय रस दोहनि,
प्रिय अति सदा सखी ललिता की॥
आरती श्री वृषभानुसुता की …
संतत सेव्य सत मुनि जनकी,
आकर अमित दिव्यगुन गनकी।
आकर्षिणी कृष्ण तन मनकी,
अति अमूल्य सम्पति समता की॥
आरती श्री वृषभानुसुता की …
कृष्णात्मिका, कृषण सहचारिणि,
चिन्मयवृन्दा विपिन विहारिणि।
जगज्जननि जग दुखनिवारिणि,
आदि अनादिशक्ति विभुता की॥
आरती श्री वृषभानुसुता की …
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