एक सुबह जब मिथिला नरेश अपने मित्र के साथ बाग में टहल रहे थे तो फिर अचानक गोनू झा कई सेवकों के साथ आए। सबने मिथिला नरेश को प्रणाम किया। सेवकों के साथ लाए टोकने जमीन पर रख दिए। उसमें खरबूजे थे।
यह देख नरेश खुश हो उठे। उनके मित्र ने कहा कि आज वर्षों बाद इतने अच्छे खरबूजे देख रहा हूं। मिथिला नरेश ने सेवकों से छुरी और थाली लाने को कहा तो गोनू झा बोले- क्षमा करें महाराज, हमारे अतिथि ने कहा था कि वर्षों से खरबूजे नहीं देखे इसलिए ये खरबूजे खाने के लिए नहीं, देखने के लिए हैं।
गोनू झा ने कहा ये मिट्टी के बने हैं। नरेश सहित सभी दरबारी गोनू झा की चतुराई पर दंग रह गए। गोनू झा की चतुराई पर मित्र भी जोर-जोर से हंसा और उन्होंने कहा- वाह गोनू झा, समझो हमने खरबूजे देखे ही नहीं, खा भी लिए।
इसके बाद मिथिला नरेश ने गोनू झा को उनकी चतुराई के लिए ढेर सारा इनाम देते हुए उनको शाबाशी दी कि तुम सचमुच इस दरबार के अनमोल रत्न हो, तुम्हारी सूझबूझ से आज मेरे मित्र की इच्छा पूरी हो सकी।
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