नई दिल्ली : मिथिला में गोनू झा रहते थे वे बहुत ही चतुर और चालक थे। गोनू झा मिथिला के राजा के दरबारी थे। एक दिन मिथिला नरेश की सभा में उनके बचपन का मित्र आया था। नरेश उन्हें अपने अतिथि कक्ष में ले गए। उन्होंने अपने मित्र की खूब आवभगत की।
इस दौरान अचानक मित्र की नजर दीवार पर लगे एक चित्र पर गई, चित्र खरबूजे का था। मित्र बोला – कितने सुंदर खरबूजे हैं। वर्षों से खरबूजे खाने को क्या, देखने को भी नहीं मिले। अगले दिन मित्र ने यही बात दरबार में भी दोहरा दी।
मिथिला नरेश ने दरबारियों की तरफ देखकर कहा- “क्या अतिथि की यह मामूली-सी इच्छा भी पूरी नहीं की जा सकती?” मिथिला नरेश के आदेश के बाद सारे दरबारी, मंत्री, पुरोहित खरबूजे की खोज में लग गए। बाजार का कोना-कोना छान मारा। गांवों में भी जा पहुंचे।
गांव वाले उनकी बात सुनकर हंसते थे कि इस सर्दी के मौसम में खरबूजे कहां मिलेंगे। जब सब थक गए तो एक दरबारी ने व्यंग्य से दरबार में कहा- महाराज, अतिथि की इच्छा गोनू झा ही पूरी कर सकते हैं। सच है कि इनके खेतों में इन दिनों भी बहुत सारे रसीले खरबूजे लगे हैं।
मिथिला नरेश ने गोनू झा की तरफ देखा। नरेश की आज्ञा मानते हुए गोनू झा ने कुछ दिन का समय मांगा फिर गोनू झा कुछ उपाय सोचते हुए दरबार से चले गए। कई दिन बीतने पर भी गोनू झा दरबार में नहीं आए। पुरोहित ने कहा- कहीं डरकर गोनू झा राज्य छोड़कर तो नहीं चले गए।
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